शीर्षक - बाल-लीला कविता पर चर्चा की गई. आज का प्रारंभ दिवस ज्ञान पर चर्चा से किया गया. विगत दिवस से आगे बढ़ते हुए सर्वप्रथम प्रस्तुत कविता को लयबद्ध एवं हावभाव के साथ पढ़ा गया. पहले आठ पक्तियों के भावार्थ पर भी बातें की गई.
शीर्षक - बाल-लीला कविता पर चर्चा की गई. आज का प्रारंभ दिवस ज्ञान पर चर्चा से किया गया. विगत दिवस से आगे बढ़ते हुए सर्वप्रथम प्रस्तुत कविता को लयबद्ध एवं हावभाव के साथ पढ़ा गया. पहले चार पक्तियों के भावार्थ पर भी बातें की गई.
अंततः गृहकार्य एवं कल क्या सीखना है? इसकी एक झलक के साथ पाठ सम्पन्न किया गया.
आज दिनांक 05.06. 2020 दिवस 47,वर्ग 6,विषय संस्कृत की कक्षा में आज हम पाठ 6 सुभाषितानि का अभ्यास प्रश्न हल करेंगे। जिसकी शुरुआत हमने एक सूक्ति से की जो कि इस प्रकार है -
"पुस्तकस्था तु या विद्या परहस्तगतं धनं।
कार्यकाले समुद्रत्पन्ने न सा विद्या न तद् धनं।।"
आज दिनांक 05.06.2020 स्कूल ऑन मोबाइल के 47 वें दिन वर्ग- 6,विषय-विज्ञान,अध्याय-9 (जंतुओं में गति) के अंतर्गत हमारे शरीर में अस्थियों का महत्त्व, मांस पेशियों एवं अस्थियों के संरचना तथा कार्यों के बारे में विस्तृत चर्चा की गई।
आज दिनांक 02.06.2020 स्कूल ऑन मोबाइल के 44 वें दिन वर्ग- 6,विषय-विज्ञान,अध्याय-8 (फूलों से जान-पहचान) के अंतर्गत अभ्यास प्रश्नों को हल किया गया। साथ ही अध्याय-9 (जंतुओं में गति) के अंतर्गत गति और गमन में अंतर बताते हुए इसे स्पष्ट किया गया।
आज दिनांक 04.06.2020 स्कूल ऑन मोबाइल के 45 वें दिन वर्ग-6,विषय-विज्ञान,अध्याय-9 (जंतुओं में गति) के अंतर्गत मानव कंकाल में अस्थियों के संधि के विभिन्न प्रकार के बारे में विस्तृत चर्चा की गई।
आज दिनांक 03.06.2020 स्कूल ऑन मोबाइल के 44 वें दिन वर्ग- 6,विषय-विज्ञान,अध्याय-9 (जंतुओं में गति) के अंतर्गत हमारे शरीर में गति के लिए अस्थियों का संधि स्थल कितना महत्वपूर्ण है इस पर विस्तृत चर्चा की गई।
आज दिनांक 04.06 .2020 दिवस 46 वर्ग 6 , विषय संस्कृत कक्षा में आज हम षष्ठम पाठ का अध्ययन करेंगे।जिसकी शुरुआत हम एक सूक्ति से करेंगे जो इस प्रकार है-
मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचन तथा।
क्रोधश्च दृढ़वादश्च परवाक्येष्वनादर:।।
आज दिनांक 03.06 .2020 वर्ग 6 विषय संस्कृत ,दिवस 45 वा आज की कक्षा में हम पंचम पाठ के अभ्यास प्रश्न को हल करेंगे। जिसकी शुरुआत हमने एक सूक्ति से की जो कि इस प्रकार है -
"विद्वत्वं च नृपत्वं च न एव तुल्ये कदाचन्।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।।